Mar 9, 2012

सच ये भी है की सर पे मेरे इल्जाम बहुत है...................

करने को मेरे जिम्मे अभी काम बहुत है,
सच ये भी है की सर पे मेरे इल्जाम बहुत है,
मैं ढूंढ़ता फिरता हु जिसे कूचा बा कूचा,
इस नाम के इंसान यहाँ आम बहुत है,

अब चाहने से मिलती है महोबत कहाँ ऐसे,
बाज़ार में इस शय के अब दाम बहुत है,
तारीफ करू तेरी महोबत की जुबान में,
गुलशन में तेरी खुसबू के इक्साम बहुत है,

लेना है क्या मुझे तेरी दुनिया ओ जहान से,
दिल में तेरी यादों के सुबह शाम बहुत है,
जानम तेरी दुनियां में नहीं मिलती रफ़ाक़त,
कह दू के वस्ल के अंजाम बहुत है,

नाचीज़ ने इस चीज़ को क्या है समझा,
इस लफ्जे मोहबत में आलाम बहुत है,
मयाल है शोकत जिन्दगी अंजाम के जानिब,
चल रुक के जरा तू अभी इनाम बहुत है.........

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