Dec 7, 2010

जला है यूं घर का मेरे तिनका तिनका

अंधेरो में रहने की आदत है हम को,
उजालो में आने से डरते बहुत हैं।
तेरे आने से घर हो सकता था रौशन ,
पर आँखे चोंधियाने से डरते बहुत हैं।

जिसे भी दिखाए उसी ने कुरेदे ,
जख्मो की अपनी यही दास्ताँ है।
बेवजह नही जो किसी मेहरबान को,
जख्म अब दिखाने से डरते बहुत हैं।

अभी तक भी सब की 'ना' ही सुनी थी,
तेरी 'ना' भी कोई अजूबा नही है।
सच तो है ये कि मेरी जानेमन ,
तेरी ' हाँ ' हो जाने से डरते बहुत हें।

चाहा जिसे भी दिलोजान से चाहा,
बस इतनी सी गल्ती रही है हमारी।
है चाहत कि तुमको भी चाहे बहुत,
पर गलती दोह्राने से से डरते बहुत हैं।

राहों मे मिलते हो तब पूछते हो,
कैसे हो क्या हाल है आपका,
कभी घर में फुरसत से बैठो,
सुनाने को गम के फसाने बहुत है।

जब भी नशेमन बनाया है कोई,
गिरी आसमान से कई बिजलियाँ ।
जला है yuun घर ka मेरे तिनका तिनका,
nya घर basaane से डरते बहुत हैं।

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