Dec 15, 2010

मैं और जिन्दगी..................

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर,
इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे चली जाती,
मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर,
जिन्दगी मुझसे फिर चार कदम आगे चली जाती,
जिन्दगी को जीतता देख मैं मुश्कुराता और
जिन्दगी मेरी मुश्कुराह्त पर हैरान होती,
ये सिलसिला यूँही चलता रहा ,
फिर एक दिन मुझको हस्ता देख एक सितारे ने पुछा"तुम हारकर भी मुस्कराते हो ,
क्या तुम्हे दुःख नहीं होता हार का?"
तब मैंने कहा ,मुझे पता है एक ऐसी सरहद आएगी,
जहा से जिन्दगी चार तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा पायेगी और
तब जिन्दगी मेरा इंतज़ार करेगी और मैं तब भी अपनी रफ़्तार से यूँही चलता रुकता वहां पहुंचूंगा .........एक पल रुक कर जिन्दगी की तरफ देख कर मुस्कुराऊंगा ,
बीते सफ़र को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाऊँगा ,
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाऊंगा ,
मैं अपनी हार पर मुस्कुराया था और अपनी जीत पर भी मुस्कुराऊंगा और
जिन्दगी अपनी जीत पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी न मुस्कुरा पायेगी ,
बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सीखूंगा ............................................................

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